वीरेन्द्र बहादुर सिंह
संबंधों का हिसाब हो गया,
कितने खाते बंद हो गए,
यादों की फाइल बनाई,
दिल की अलमारी बंद हो गई,
छोड़ कर दिलों का साथ लोग,
हवाईमहल में रहने लगे,
क्षणिक बाहरी हवा क्या आई,
घर की छांव आकाश चढ़ गई,
नाग ने भी संपोले को आजाद कर दिया,
कलयुग को भी लोग मानने लगे,
छिपकली मोती बीनने क्यों आई,
रुपए से प्रेम बिकने लगा,
सच्चाई क्यों दिखाए दर्पण,
लोग फिल्टर का उपयोग करने लगे,
फूल, पत्थर, शब्द, महफिल तक,
दर्द जल में उतरने लगा,
निडर हो कर लिखूं हकीकत सारी,
शब्दों में अनुभव घोलता गया।
वीरेन्द्र बहादुर सिंह
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