सवि शर्मा
दुबे जी सम्भ्रांत पढ़े लिखे घराने से ताल्लुक़ रखते थे ।दसवी में ही उनके पिता का निधन हो गया था ।उनकी परवरिश माता जी के हाथों ही हुई ।सुबह शाम दुबे जी के घर एक घंटे पूजा होती थी ।उसमें रामायण की यह चोपाई
“ढोल गंवार शूद्र पशु नारी
सकल ताड़ना के अधिकारी “
बड़ी तन्मयता से गाया जाता था ।दुबे जी की माता जी बताती बेटा तेरे दादा जी बहुत ग़ुस्से वाले थे ।सारा परिवार उनकी एक आवाज़ से काँपता था ।किसी की हिम्मत नहीं थी उनका विरोध कर सके ।बड़ी तल्लीनता से बताती बेटा “एक बार की बात है तेरे दादा जी के खाने में बाल आ गाया तो तुरन्त नाई को बुलवा कर उनका सिर मुंडवा दिया गया और मजाल है परिवार में कोई चूँ भी करता ।
ऐसी बहादुरी के किस्से सुनकर किशोराअवस्था से दुबे जी का व्यक्तित्व निर्माण कर रहीं थी ।दुबे जी को भी लगता मुझे भी ऐसा ही बनना है परिवार को चलाने के लिए क्यूँ की मैं ही सबमें बड़ा हूँ ।अगर” काले सिर वाली “आ गई और मेरा कहना नहीं माना तो परिवार बिखर जाएगा ।
काले सिर वाली का अलंकार दुबे जी की माता जी दुबे जी की होने वाली पत्नी के लिए कहा करती थीं।दुबे जी बहुत जल्दी ही नौकरी पर लग गए थे ।बाक़ी भाई बहन पढ़ रहे थे ।
दुबे जी भी अक्सर माँ से कहते “माँ बताओ बाबा कि और बातें “तो बड़े लाड़ से कहती “क्या बताऊँ बेटा एक बार तो तेरी दादी से सब्ज़ी जल गई तो तेरे दादा ने पलंग के पाए के नीचे दादी का हाथ रख दिया और उसके ऊपर बैठ गए ।
“अच्छा अम्मा ऐसा हुआ ।”दुबे जी ऐसे सुनते जैसे देश के वीरों के किस्से सुन रहें हो ।
एक और विशेष बात थी ।दुबे जी के एक मित्र जो अक्सर घर आते थे वे भी बताते -“भई दुबे जी पत्नी का तो महीने में एक बार रिनीवल कर देना चाहिए ।”
मतलब पिटाई जिससे वो कंट्रोल में रहती है ।और अब दुबे जी अपने परिवार में माता जी को कौशल्या मान पूजते हैं क्यूँ कि वो खुद राम हैं ।लेकिन उनकी पत्नी
“ढोल गंवार शूद्र पशु नारी
सकल ताड़ना के अधिकारी “बहुत आश्चर्य की बात पर ऐसे परिवार आज भी हैं।
सवि शर्मा
देहरादून