डाॅ. अनीता शाही सिंह
भावों को शब्दों में भरकर
पन्नों पर बिखराते हैं जो
बंजर मन में नेह-सुमन की
नूतन पौध लगाते हैं जो
जिनसे करूणा का उद्गम है
जिनसे रस बरसा करता है
शब्द-शब्द जिनका मन के
अनुभावों को तरसा करता है
जिसने संबंधो के स्वर को
गीतों में गढ़कर गाया है
जिसने छंदो में, ग़ज़लों में
प्रेम सुधा को बरसाया है
जब कविता से खुद को जोड़ा
मुझ पर नेह उलीचा सबने
फिर जीवन ही मेरी कविता
मैंने महसूस किया है
हाँ जो भी कहना चाही
इस मन से उसको स्वर देती हूँ
साधा बोल न पाती मैं
तो भावों को भर देती हूँ ।।
डाॅ. अनीता शाही सिंह
प्रयागराज