दोपहरी गुज़रे ठंडी- ठंडी छांव में,
सदा रहें सलामत पेड़ मेरे गांव में।
पेड़ों से सजे हों गांव हमारे,
नीम का पेड़ हो द्वारे -द्वारे,
डाल पर रस्सी झूला झूले,
कुछ देर मोबाइल को भूलें,
कोई ना मरे शुद्ध हवा के अभाव में
सदा रहें सलामत पेड़ मेरे गांव में।
पेड़ लगाने से बड़ा मज़हब नहीं,
पेड़ सींचने से बड़ा अदब नहीं,
फल से बड़ा कोई नेअमत नहीं,
पेड़ से बड़ा कोई शोहरत नहीं,
जीवन जीयें सदा सद्भाव में,
सदा रहें सलामत पेड़ मेरे गांव।
नूर फातिमा खातून "नूरी"
( शिक्षिका)
जिला-कुशीनगर
उत्तर प्रदेश
मौलिक स्वरचित