संस्मरण-एहसास

 

इंदु मिश्रा"किरण"

ज़िंदगी में कभी-कभी कुछ ऐसा घटित हो जाता है कि भूल पाना मुश्किल होता है ।ऐसे ही मेरे साथ एक ऐसी घटना जुड़ गई जिसे मैं कभी भुला नहीं पाती ।बात 2001 की है ।मैं उस समय एक छोटे-से विद्यालय में पढ़ाती थी । संघर्षों का दौर था । भविष्य के लिए सुनहरे सपने आँखों में लिए ज़िंदगी आगे बढ़ रही थी ।प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के साथ-साथ जेबख़र्च के लिए शिक्षण कार्य भी कर रही थी । संगम विहार में एक छोटा-सा विद्यालय था-ज्ञानदीप पब्लिक स्कूल ,वहीं मैं ₹2500 मासिक पर शिक्षण कार्य करती थी ।

         उसी विद्यालय में कक्षा-सातवीं में मैं एक दिन हिंदी पढ़ा रही थी । सभी से गृहकार्य की उत्तर-पुस्तिका जमा करने को कहा ।ज़्यादातर बच्चों ने उत्तर-पुस्तिका जमा कर दी । एक बच्चा कक्षा में बहुत शांत बैठा था ,उससे उत्तर-पुस्तिका जमा करने को कहा तो कोई ज़वाब नहीं दिया । सिर नीचे कर लिया । मैंने सोचा कार्य नहीं किया होगा ,इसलिए कुछ नहीं बोल रहा है ।मैंने भी एक बार डाँटकर छोड़ दिया । दूसरे दिन फिर पूछा तो कोई ज़वाब नहीं ,सिर झुका लिया । तीसरे दिन फिर कक्षा में जाते ही मैंने उससे पूछा उत्तर-पुस्तिका के लिए ।फिर कोई ज़वाब नहीं ,शांत बैठा रहा ।उसकी इस आदत पर मुझे बहुत क्रोध आया । मैंने डाँटकर उसे अपने पास बुलाया ।गुस्से में बहुत कुछ बोलती रही और कक्षा में ही खड़ा कर दिया उसे । थोड़ी देर बाद देखा कि उसकी आँखों अविरल अश्रुधारा बहने लगी । उसको रोता देखकर मेरा मन भी द्रवित हो गया ।मैंने उसे पास बुलाकर पूछा कि तुम आख़िर काम क्यों नहीं पूरा करते हो ? क्या परेशानी है ?

         मेरे व्यवहार में परिवर्तन देखकर उसको हिम्मत मिली और रोते हुए बताने लगा ,"मैडम , हम सात भाई-बहन हैं ,मेरे पिता जी साइकिल पर बीड़ी बेचते हैं ।बहुत मुश्किल से हमें खाने को मिल पाता है । पढ़ने में मेरी रुचि देखकर मेरे पिता जी ने इस विद्यालय में दाखिला करवा दिया है किंतु उनके पास इतने पैसे नहीं हैं कि मेरे लिए उत्तर-पुस्तिका खरीद सकें । वो जब बीड़ी बेचकर घर आते हैं तो बहुत परेशान से रहते हैं । रोटियाँ भी हमें गिनकर दी जाती हैं ।दो रोटी से ज़्यादा इच्छा हो खाने की तो नहीं मिलती । इसलिए मैं उत्तर-पुस्तिका के लिए पैसे नहीं माँग पाता । आपका काम नहीं कर पाता ।"

          अपनी बात कहते-कहते फिर से रो पड़ा ।पूरी कक्षा के बच्चे उसे ही देखने लगे ।उस समय उसकी आँखों के आँसू मेरी आँखों से बहने लगे ।उसको प्यार से सहलाया मैंने और उसके आँसू पोछे । उस दिन मैं पढ़ा नहीं पाई ।देर तक मन परेशान रहा । बहुत पछतावा भी हो रहा था कि क्यों मैं उसे डाँट रही थी ।पहले क्यों नहीं उसकी परेशानी पूछ ली मैंने । मैंने कई उत्तर-पुस्तिकाएँ खरीदकर उसे दीं । हर तरह से उसकी सहायता करती रही ।

         यह घटना अविस्मरणीय है मेरे लिए । एक छोटे से बच्चे को अपनी ग़रीबी का एहसास था ,अपने पिता की परेशानियों का एहसास था ।उस उम्र में जब बच्चों को पता ही नहीं होता कि कहाँ से पैसा आ रहा है ? घर का खर्च कैसे चल रहा है ? 

         इंदु मिश्रा"किरण"

          शिक्षिका

         नई दिल्ली

9717799298

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