शिवम पचाैरी
(1) तमाम किये गये गुनाहाें काे अब सिर्फ़ एक चादर से ही ताे ढांक रहा हूं
तुम जाे तस्वीर भेजते थे उन्हें देखकर ही ताे अब तन्हाईयां काट रहा हूं
(2) अब किसान का कहीं भी नाम नहीं, मांग सिर्फ़ एक ख्वाब है
सरकार में चाेंराे की तानाशाही और उचक्काें का ही दबाब है
(3) वाे भारत नहीं इज़रायल है क्युं मरने आये हाे तुम गाजा
बुलन्दी, हाैंसले देख हूराें के स्वप्न का फलस्तीनी भागा
(4) अब कितना खाैंफ़ देखें यहां, लाेग गंगा में भी ना तर रहे
ऐसी है बर्बादी कि श्मसान से गंगा तक शव ही भटक रहे
(5) हम जाकर क्या दाेष दें वज़ीर के दरबार में
अब ताे लाख ग्राहक है कफ़नाें के बाज़ार में
शिवम पचाैरी
फिराेजाबाद