अपनी सुत्रबंधन के अठारह वर्षों के सफ़र साथ पे
अंजु दास गीतांजलि
सफ़र में साथ तेरा साथी जन्मों तक निभाऊंगी ।
मैं दुल्हन तेरी बनके साथी तेरा घर सजाऊंगी ।
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कभी गुस्सा कभी तकरार होगा प्यार में लेकिन
थके। हारे जो आओगे तुम्हे सीने लगाऊंगी।
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तेरी होकर ही रहना चाहती हर जन्मों तक मैं भी ।
यकीं कर तेरे घर में रोज़ इक दीपक जलाऊंगी ।
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सजाऊंगी मैं अपनी मांग तेरे नाम से हमदम ।
बड़े आराम से बिस्तर पे सर तेरा दबाऊंगी ।
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ख़ुदा का वास्ता तुमको कभी तुम छोड़ मत देना ।
तड़प कर जान देदूंगी तुम्हें मैं ना भुलाऊंगी।
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कहां जाओगे बोलों भागकर के तुम जहां जाओ
मेरी आवाज़ तुमको खींच लेंगी जब बुलाऊंगी।
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अंजु दास गीतांजलि पूर्णियां बिहार की क़लम से 🙏🌹🙏👈