अनुपम चतुर्वेदी
मैं परिचारिका हूं।
मैंने जनसेवा का वीणा उठाया है,
अपने कर्तव्य को मन से निभाया है।
मेरे जिम्मे जो भी मरीज आते हैं,
उनकी सेवा के लिए मैंने अपना
जी-जान लगाया है।
इसीलिए उनकी विचारिका हूं।
मैं परिचारिका हूं।
वो काले हैं या गोरे हैं,
अमीर हैं या गरीब हैं
मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता
मैं उनकी खुशी की विस्तारिका हूं।
मैं परिचारिका हूं।
मेरा भी परिवार है, जो मेरा आधार है,
उनके लिए मैं हूं,मेरा वहीं संसार है।
रात हो दिन,हर पल-छिन
जिस भी वेला में मेरी ड्यूटी लगती है
उसे जीती हूं जीवन्तता से,
इसीलिए उनकी बहन, बेटी, शिक्षिका हूं।
मैं परिचारिका हूं।
डांटती हूं,कभी-कभी झिड़क भी देती हूं,
फिर प्यार से पुचकारती हूं,
जख्मों पर मरहम भी करती हूं।
उनकी भलाई से समझौता नहीं करती,
इसीलिए उनकी दर्द-निवारका हूं।
मैं परिचारिका हूं।
सबसे से प्यार और सम्मान भी पाती हूं,
कभी-कभी लोगों का कोपभाजन भी,
बन जाती हूं।
सबकी आड़ी-तिरछी नज़रों से गुजरती हूं,
फिर भी मुस्कुराते हुए सब सहती हूं।
चिकित्सकों के निर्देश का पालन करती हूं,
अपने कर्तव्य पथ पर अडिग चलती हूं।
अपनी घर-गृहस्ती के लिए चलाती आजीविका हूं।
हां साहिब मैं परिचारिका हूं।
अनुपम चतुर्वेदी
,सन्त कबीर नगर,उ०प्र०