सुधीर श्रीवास्तव
ये कैसी विडंबना है
कि आज समूचा संसार
मुझे ही दोषी मान रहा है,
अपनी परेशानियों के
खुद बाजार लगा रहा है।
मैं तो मात्र एहसास हूँ
ये कोई समझ ही नहीं रहा है
या जानबूझकर
समझना ही नहीं चाहता,
जो भी हो अपनी जिंदगी
खुद बर्बाद कर रहा है।
बीमारी कब नहीं थी
लोग अमर कब थे
मृत्यु कब नहीं होती थी,
परंतु आज
सिर्फ़ आँकड़ेबाजी हो रही है,
बहुत बड़ी साजिश हो रही है
मेरे नाम के सहारे लोगों को
मारने के इंतजाम हो रहे हैं,
हर किसी की,कैसी भी मृत्यु हो
मेरे सिर मढ़ दे रहे हैं।
मैं फिर कहता हूँ कि
मैं सिर्फ एहसास हूँ
मुझे दुश्मन मत समझिए
मेरे नाम का खौफ मत फैलाइये,
सामान्य जीवन जियें
अन्याय बीमारियों की तरह
मुझे भी समझें,
इलाज कराइए, खौफ न फैलाएं।
पुरानी परंपराओं की ओर
फिर से लौट चलिए,
सात्विक बनिये
आधुनिकता की आड़ में
नियम, धर्म, सभ्यता मान्यताओं का
पुरातन पंथी कहकर
और न उपहास करिए,
मैं महज एहसास भर हूँ
महसूस तो करिए।
कहाँ से चले थे आप
क्या क्या रौंद कर आज
कहाँ आ गये हैं ?
मुझे तो सब मिलकर
बलि का बकरा बना रहे हैं,
सोच बदलिए,
कल और आज के
मृत्यु के आँकड़ों का
आंकलन तो करिए,
मैं सिर्फ एहसास हूँ,
हाँ जो खौफजदा हैं
उनके लिए मृत्यु के समान हूँ।
बस ! हे मानवों
अपनी सोच बदलिये
मात्र एहसास हूँ महसूस करिए
हँसी खुशी से रहिए
और हमको भी
प्यार से रहने दीजिए।
एहसास ही हूँ ,यकीन कीजिए
मेरे अस्तित्व पर न प्रहार कीजिए,
बस मेरे जीवन यापन लायक
वातावरण तैयार कर दीजिए,
सर्व प्राणी समभाव का भी
थोड़ा सा विस्तार कीजिए।
मैं सिर्फ एहसास हूँ
ये गाँठ बाँध लीजिए।
◆ सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921