कोई साथ ना अपने ,
निकले अपनी डगर को ।
छोड़ प्यारे गाँव ,
चल दिये शहर को ।
जीवन के लिए ऐसा ,
करते हैं सब मगर ,
मन में है विश्वास ,
लौट आयेंगे घर को ।।
माता-पिता का प्यार ले,
बढ़ते हैं राह पर ।
उनको छोड़ चल दिए ,
उनके हाल पर ।।
अमृत को त्याग बढ़ लिए ,
पीने जहर को ।
छोड़ प्यारे गांव ,
चल दिए शहर को ।।
जीवन में साथ देने का ,
वायदा किया जिसने ।
छोड़ा साथ उसका ,
जोड़ा हमें जिसने ।।
कैसे ?झेल पायेंगे ,
ख्वाबों के कहर को ।
छोड़ प्यारे गाँव ,
चल दिए शहर को ।।
होता सवेरा रोज ,
सुनते थे किलकारी ।
शहनाई सी आवाज ,
लगती बड़ी प्यारी ।।
सोते हुए छोड़ आये ,
टुकड़े -जिगर को ।
छोड़ प्यारे गाँव ,
चल दिए शहर को ।।
खेले थे दोस्तों में ,
भैया भी साथ में ।
अब कौन? कहाँ ?रहे ,
नहीं अपने हाथ में ।।
छोड़ बहिन चल दिए ,
गंगा सी लहर को ।
छोड़ प्यारे गाँव ,
चल दिए शहर को ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)