रमेसर अपनी मेहरारू संगे शहर से गाँवे अइलन। उनका अपना बेटा पतोह से पहिलहूँ जबाब मिल चुकल रहे कि तू आपन खूद सोचिह, माटी कइसे पार लागी । ई कुल्ही बात रमेसर बिसार देले रहन कि कतनो त लइके नू जवाबदेही अपने बुझा जाई ओकरा।
गाँव घर के लोग में उत्साह जागल कि रमेसर चाचा अइलन रमेसर चाचा। केहू कुछ कहे जन एह खेआल लेके करमू गते गते जाते रहन कि रमेसर के ऊँच खाल जमीन ना बुझाइल गिर गइलन । करमू के ई ना बुझाइल कि धा के हाली हाथ लगाईं आ उठाईं, हम। आ करमू बो त उहँ करके घिनात टकस गइली जइहे ससुर - सास के जहमत उनुके ढोवे के परी। करमू के माई रमेसर के उठावत कहली -
' गाँव के जमीन ऊँच खाल होला, तनि थाह के चलऽ ।'
करमू अनेरिया नियन हाथ लगावत कहलन - गाँव के जमीने खाली काहे, अदिमियो के थाह के चले के परी। '
ई बात रमेसर के बड़ी चोट नियन लागल आ अइसन लहू से घिनात कहलन -
' ई उमिर हमनी दूनों बेकति गिरे आ उठे ओला आ गइल बा, करमू । तोहार हाथ गंदा हो जाई, धूर लाग जाई । आ जवन तूँ बात कहल ह फिर दोबारा कहब त सुन के इनिकर दुध लजा जाई। '
अइसन जमला के सभे तिरस्कृत नजर से देखत रहे आ गाँव के जमीन रमेसर चाचा से छमा चाहत रहे। कहीं लौट जन जास रमेसर चाचा आ चाची शहर। कइसे बची गाँव में लौटल गाँव के उत्साह।