छंद - कुण्डलियाँ
डॉ. अर्चना दुबे 'रीत'
गाथा जिनकी सब सुने, ऐसा है सुरधाम ।
बलशाली उन सा नहीं, अवतारी भगवान ।
अवतारी भगवान, किये शिवशंकर पूजा ।
वीरो में अति वीर, ब्राम्हणों में नहि दूजा ।
'रीत' कहे कर जोड़ि, शरण में झुकता माथा ।
परशुराम अवतार, विष्णु की गाओ गाथा ।।1।।
आशा ब्राह्मण में जगा, लिए विष्णु अवतार ।
पापों से होगा रहित, अब सारा संसार ।
अब सारा संसार, रूप षष्ठी कर धारण ।
किये क्षत्रिय संहार, दुखों का किये निवारण ।
'रीत' चरण शिर नाय, भजन गाये निज भाषा ।
प्रभु का तेज प्रकाश, जगाये सबमें आशा ।।2।।
कविता
विष्णु के अवतार में
जन्म लिये भगवान
छठा रूप धरि परशुराम जी
जन का किये कल्याण ।
ब्राह्मण के थे कुलगुरु
जन्म अक्षय तृतीया, वैशाख
शुक्लपक्ष, तृतीया दिवस
त्रेतायुग शुरुवात ।
दानी परशुराम जी ने
कश्यप ऋषि जी को दिये धरा का दान
स्वंय तपस्वी बन गये
महेन्द्र गिरि पर किये निवास ।
शस्त्र, शास्त्र विद्या के गुरु महान
भीष्म, द्रोण को किये प्रदान
पृथ्वी पर किये इक्कीस बार
अत्याचारी क्षत्रियों का विनाश ।
धरा क्षत्रियों से रहित किये
जमदग्नि पुत्र को कोटि प्रणाम
भीषण क्रोध इनमें था व्याप्त
गणपति पर किये फरसा प्रहार ।
यह बात पुराणों में मिलता
थे सप्त चिरंजीवी नामों में
जमदग्नि - रेणुका के पुत्र हुए
बन पंचम सन्तान अवतार लिये ।
भगवान परशुराम की जो 'अर्चना' करता
धन, ज्ञान, भूमि, भक्ति मिलता
हर मुश्किल में रक्षा करते
हरिवंश पुराण में सब मिलता ।
*डॉ. अर्चना दुबे 'रीत'*✍️
मुम्बई