गीता पाण्डेय अपराजिता
मॉ के ऑचल में नित खेले ,
हॅस-हॅस कर फिर रोता बचपन ।1।
क्या लेना दुनिया से उसको ,
अलमस्त सदा होता बचपन।2।
मॉ की गोद उसे मिल जाये,
हॅसता और हॅसाता बचपन ।3।
बाबा बनते टिक-टिक घोड़े,
सरपट दौड़ लगाता बचपन ।4।
ऑख खुली तो धमाचौकड़ी,
थका अगर तो सोता बचपन।5।
लोरी,किस्से,गीत,कहानी ,
नहीं सुने तो रोता बचपन ।6।
दादी,नानी की गोदी में ,
खूब लगाये गोता बचपन ।7।
तुतलाकर फिर उठ-उठ गिरना,
दिव्य,अलौकिक होता बचपन ।8।
बदल रहा परिवेश सहज ही ,
अपना गौरव खोता बचपन ।9।
याद किसे है कोई बताये ,
कैसे हॅसता रोता बचपन।10।
गीता पाण्डेय अपराजिता
रायबरेली उत्तरप्रदेश 9415718838