खाद पानी की नहीं है आस
जाड़ा, गर्मी या हो चौमास
सदा हरा भरा रहता हूं
खिला खिला रहता हूं
जैसा कल था, वैसा आज
जिजीविषा है मेरा राज
जो ना चाहो मुझे गमले में सजाना
अपने घर के सुंदर आंगन में लगाना
तो मैंने कब शोक मनाया
मैंने जंगल के कोने को
अपना स्वर्ग बनाया
मैं हूं जंगल का सरताज
नहीं याचना का मोहताज
मुझ में है क्षमता अपार
क्योंकि मैं हूं एक सदाबहार।
अमृता पांडे
हल्द्वानी नैनीताल