'ऐनुल' बरौलवी
भूके सभी मज़दूर हैं , दे दे निवाला या ख़ुदा
वोटों की ख़ातिर ही इसे , सबने उछाला या ख़ुदा
कपड़ा बदन पर,सर पे छत ,इसको मयस्सर है नहीं
ये माँगता तुमसे नहीं , मस्जिद - शिवाला या ख़ुदा
रोटी के चक्कर में है निकला , गाँव से कोसों ये दूर
मुश्किल घड़ी में हो तुम्हीं इसके रखवाला या ख़ुदा
ये लाॅकडाउन में फँसा है , काम - धंधे बंद हैं
इसको मकाँ मालिक ने घर से है निकाला या ख़ुदा
चलती नहीं कोई सवारी , गाँव कैसे जाए ये
मज़बूर हो पैदल चला , हिम्मत सँभाला या ख़ुदा
हैं साथ में बीबी व बच्चे , सर पे है सामान भी
पैसा नहीं जब जेब को , इसने खँगाला या ख़ुदा
सरकार आँखें मूँदकर , सोई हुई है अब तलक
मज़बूर ओ मज़लूम के मुँह , भूके ताला या ख़ुदा
अब ज़िन्दगी ओ मौत में ,कुछ फ़ासला 'ऐनुल' नहीं
भूके नहीं अब ज़ीस्त का , निकले दिवाला या ख़ुदा
'ऐनुल' बरौलवी
गोपालगंज (बिहार)