कुमार अनिल
जबसे मिला है मुझे तुम्हारा संदेश,
न थम रही आँखों में आँसुओं का रेस।
पर्यावरण के रक्षक तुम पौधों के रखवाले,
तुम यादें और शिर्फ यादें ही छोड़ जाओगे।
मुझे उम्मीद न थी मेरे प्रिय मित्र पंकज,
कि तुम दुनियां को अलविदा कह जाओगे।
हर लम्हें, फोन पर हुई हर बातें मुझे याद आती है,
सोचता हूँ अतीत में तौ शिर्फ तुम्हारी याद आती है।
कोरोना से जंग लड़ते हुए हौसला बढ़ाया था,
तुम जंग जीतकर घर वापस जरूर आओगे।
मुझे उम्मीद न थी मेरे प्रिय मित्र पंकज,
कि तुम दुनियां को अलविदा कह जाओगे।
कोरोना कि प्रथम लहर में, दिल थाम कर बैठे थे घरों में,
पूछा करता था ख़ैरियत तुमसे, बताते थे अपने बारे में।
टूट गया हूँ तुम्हारी शोक भरे संदेश को पढ़कर,
न सोचा, न समझा अँधेरे में यूहीं तुम खो जाओगे।
मुझे उम्मीद न थी मेरे प्रिय मित्र पंकज,
कि तुम दुनियां को अलविदा कह जाओगे।
इच्छाऐं थी तुम्हें कुछ पाने की,
ज़ज्बा था कुछ कर दिखाने का।
सारे अरमानो को पल में भुलाकर,
अपने सपनों को यूहीं अधूरा छोड़ जाओगे।
मुझे उम्मीद न थी मेरे प्रिय मित्र पंकज,
कि तुम दुनियां को अलविदा कह जाओगे।
*********ओम् शांति********
कुमार अनिल
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