किरण झा
जिंदगी कितना तुम सताओगी
इक दिन मुझसे हार जाओगी
सांस मेरी तेरी अमानत है
कैसे मुझको तुम बिखराओगी
डाल कर हाथ मेरे हाथों में
ले चलो तुम जहां भी जाओगी
चलते चलते यूं ही राहों में
देखकर मुझको मुस्कराओगी
नींद आये तो कभी ख्वाबों में
लोरी मुझको तुम सुनाओगी
✍🏻 स्वरचित