डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
पहला सुख निरोगी काया को ही माना गया है।अर्थात स्वास्थ्य से बड़ा कोई सुख नहीं होता।स्वस्थ तन में ही,स्वस्थ मन निवास करता है।स्वास्थ्य के संबंध में एक कथा प्रस्तुत है- एक बार एक शिष्य ने प्रसिद्ध वैद्य वाग्भट्ट जी से प्रश्न किया कोरुक:? कोरुक:? कोरुक:? अर्थात निरोगी कौन है? निरोगी कौन है? निरोगी कौन है ?
वाग्भट्ट जी ने बहुत ही सरलता से उत्तर दिया,
मितभुक,हितभुक,ऋतभुक, शतपदगामी च,वामशायी च। अविजीत मूत्रपूरीष:,खगवर !सोऽरुक:,सोऽरुक:,सोऽरुक:।
अर्थात,अल्प भोजन करने वाला, हितकारी पदार्थ सेवन करने वाला, पवित्र साधन से अर्जित अन्न खाने वाला, भोजन उपरांत 100 पग चलने वाला, वाम करवट सोने वाला तथा मूत्र एवं मल को न रोकने वाला व्यक्ति निरोगी है, निरोगी है, निरोगी है।
इस कथा के आलोक में स्वयं निर्णय लिया जा सकता है कि हम स्वस्थ है या नहीं ? जब पहला ही सुख नहीं होगा तो फिर अन्य सुखों आनंद प्राप्त करना कठिन तो होगा ही।
डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर उत्तर प्रदेश