गाली मुक्त जुबान बनाएं
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सत्य वचन की कोशिश हो,
शुद्ध कथन की कोशिश हो,
धीरे-धीरे ज्ञान बढ़ाकर,
सत्य को हम पहचान बनाएं ।
आओ नई पहचान बनाएं,
गाली मुक्त जुबान बनाएं ।।
सुन्दर सुन्दर शब्द पढ़ें हम,
धीरे-धीरे कदम बढ़े हम,
अज्ञानता के अंधकार में,
एक ज्ञान का ज्योति जलाएं ।
आओ नई पहचान बनाएं,
गाली मुक्त जुबान बनाएं ।।
कुछ रिश्तों में मजाक चलत है,
गालियों की बौछार चलत है,
पर गाली को अब दूर हटाकर,
हंसता हुआ मजाक बनाएं ।
आओ नई पहचान बनाएं,
गाली मुक्त जुबान बनाएं ।।
दृढ़ प्रतिज्ञा करें स्वयं से,
कुछ बातों पर लड़ें स्वयं से,
एक ऐसा भी क्रांति जगाकर,
गंदी गाली से समाज बचाएं ।
आओ नई पहचान बनाएं,
गाली मुक्त जुबान बनाएं ।।
अपने प्यारे गांव में
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कुछ
पैसों के कारण,
दर-दर भटके
शहर की,
गलियों में ।
कांटें
जैसे चुभे हुए हों,
पुष्प गुलाब,
के कलियों में ।
याद हमें
आती है वो,
झरही वाली
नांव में ।
आओ मेरे
यारों,
फिर से
अपने प्यारे
गांव में ।।
वो धूप
मचलती राहों में
जब प्यास
बुझाए पोखर ।
शहरों में
वो नहीं
मिलत है
बाग बगीचे
खोकर ।
सारे
कष्ट दूर
हो जाते
मानों पीपल
के छांव में ।
आओ मेरे
यारों फिर से
अपने
प्यारे गांव में ।।
✍️ ऋषि तिवारी "ज्योति"
चकरी, दरौली, सिवान (बिहार)