मैं जीना चाहती हूँ


मुकेश गौतम

=======================

शहर हो या फिर गाँव हैदराबाद हो या उन्नाव।

महफ़ूज नहीं हूँ कहीं भी अब कहाँ लूं छांव।।

-------------------------------------------

किस किस दर पर जाऊँ कहाँ पर गुहार लगाऊँ।

किस पर भरोसा जताऊँ जो मैं सुरक्षित पाऊँ।।

-------------------------------------------

हर राह पर भय की छाया तो घर पर ही कैद हो जाऊँ।

बहुत संकट में हूँ आज अब यहाँ कैसें जी पाऊँ।

--------------------------------------------

क्या अपराध था मेरा जो जींदा जला दी जाऊँ। 

दुःख तो तब होता है जब न्याय भी नहीँ पाऊँ।।

-------------------------------------------

फिर क्यों यहाँ आई मैं हमेशा अबला ही कहलाऊँ।

सदा औरों के हित हीं रहूँ फिर भी सजा ही पाऊँ।।

-------------------------------------------

नई बात सिर्फ नो दिन फिर वही अंधेरा पाऊँ।

मैं बिटियाँ जीना चाहती हूँ पर कैसे जी पाऊँ।।

======================

                       रचनाकार

                    -मुकेश गौतम

                 ग्राम डपटा बूंदी(राज)

                   19:05:2021

Popular posts
अस्त ग्रह बुरा नहीं और वक्री ग्रह उल्टा नहीं : ज्योतिष में वक्री व अस्त ग्रहों के प्रभाव को समझें
Image
गाई के गोवरे महादेव अंगना।लिपाई गजमोती आहो महादेव चौंका पुराई .....
Image
सफेद दूब-
Image
आपका जन्म किस गण में हुआ है और आपके पास कौनसी शक्तियां मौजूद हैं
Image
भोजपुरी भाषा अउर साहित्य के मनीषि बिमलेन्दु पाण्डेय जी के जन्मदिन के बहुते बधाई अउर शुभकामना
Image