श्वेता शर्मा
नियति को ये मंजूर था
तभी हम तुम मिले
फिर हमारे दिल मे
मोहब्बत के फूल खिले
नियति की ये चाह थी
तुमसे ही मेरी राह थी
तुम पर जीवन हारी थी
छोटी सी प्रेम की क्यारी थी
नियति ने फिर खेली चाल
छीना उसने प्रेम का ढाल
जुदा किया दोंनो का साथ
इसमें भी नियति का हाथ
नियति के है खेल निराले
इसके आगे दुनिया हारे
छूट गए अब साथ हमारे
छूट गए अब साथ हमारे
श्वेता शर्मा
रायपुर छत्तीसगढ़
स्वरचित