पत्थर नहीं हुआ अभी , मुझ में है ज़िन्दगी
रोता है दिल बहुत मेरा , आँखों में है नदी
एक बेवफ़ा ने ज़ख़्म कुछ , ऐसा दिया मुझे
तन्हाइयाँ हैं साथ में , ग़ाइब हुई हँसी
उल्फ़त में लुट गया है , मेरा दिल करें तो क्या
ये ज़ीस्त अब भटक रही कैसी है तीरगी
लश्कर ग़मों का आज है , सर पर मेरे बहुत
मैं ढूँढता इधर - उधर , मिलती नहीं खुशी
बाज़ार सज रहा है , हसीनों का देखिये
दिखती नहीं कहीं पे है , दुनिया में सादगी
इंसानियत से बढ़ के , न मज़हब कोई यहाँ
ऐसा न काम कीजिए , हो आदमी दुखी
कहते ग़ज़ल बहुत हैं ,सुख़नवर बहुत हैं आप
महफ़िल में पेश कीजिए , अपनी तो शाइरी
'ऐनुल' कभी झुकाइए सजदे में सर ज़रा
जन्नत मिलेगा आपको करने से बंदगी
'ऐनुल' बरौलवी
गोपालगंज (बिहार)