नीलम सक्सेना जी के पेज से लाइव आकर लिटेररी वॉरीयअर ग्रुप की संस्थापिका नीलम जी साथ में सदस्य डॉ रेणु मिश्रा जी, अनूप पांडेय जी एवं निवेदिता रॉय जी ने प्रवीण जी द्वारा लिखित कविताओं का पाठ करके उनको सादर श्रद्धांजलि अर्पित किया। हमारे ग्रुप के जिंदादिल और सक्रिय सदस्य श्री प्रवीण रामटेके जी जिन्हें प्यार से हम सभी प्रवीण फरीदाबादी बुलाते थे अब हमारे बीच नहीं रहे, और हम सभी को उनका अचानक चले जाना बहुत सदमा दे गया। कार्यक्रम की शुरुवात नीलम जी के इन्हीं पंक्तियों से हुई-
हवाओ में गूंज रहे तुम्हारे ही अल्फाज हैं
बड़े ही खास तुम्हारे नज्म कहने के अंदाज हैं
दुनिया कहती है कि तुम नहीं हो मगर
फिर भी तुम्हारी मौजूदगी का एहसास है
नीलम जी ने प्रवीण जी द्वारा लिखित कविता दाना माँझी के संघर्ष को लिखा था जिसका शीर्षक 'लक्ष्य' एवं दूसरी कविता का शीर्षक 'बेखबर वतन' को पढ़कर अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की।
दाना के बिना
जीवन नहीं पक्षियों का, जीवों का, इंसानों का
माँझी के बिना
नाव नहीं, पतवार नहीं, किनारा नहीं, मझधारे नहीं
बेखबर वतन
गुनाह तो हुआ है पर गुनहगार कोई नहीं
कत्ल तो हुए हैं कई पर कसूरवार कोई नहीं
घर भी जले थे तेरे मेरे
बदन भी हुए थे लहूलुहान
पर न चिनागारियों का पता है और खंजरों की भी खबर नहीं
अनूप पांडेय जी ने उनकी कविता 'साल कैसे बीत गया' एवं 'जन्नत की चीत्कार' को पढ़कर अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की।
साल कैसे बीत गया
फिर एक साल देखते देखते बीत गया
उमंगो का घडा़ कुछ भर गया कुछ रीत गया
जन्नत की चीत्कार
एक अजीब सा मंजर है
ऐ मालिक मुल्क में तेरे
मजलुमो पे इल्जाम है
खुद अपने ही कत्ल का
सरहदे बना दी हैं सीने पर तेरे
चंद लकीरें खीचकर
अब इन लकीरों की हिफाजत में
जिस्म लहूलुहान है तेरा
डॉ रेणु मिश्रा जी ने उनकी कविता 'लकीरें' एवं 'तलाश' को पढ़कर अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की।
लकीरें
क्या हम सब की हथेली पर एक सी लकीरें हैं
शब्द जुदा हैं जुदा हैं भाषा एक सी ही तकदीरें हैं
कहीं चंद्रमा नजर है आता जोड़े हाथ लकीरों में
कहीं सुदर्शन बन छुप जाता अँगुलियों के शिरों में
तलाश
(शहर बसा कर अब
सुकून के लिए गांव ढूंढते हैं,
बड़े अजीब हैं लोग
हाथ में कुल्हाड़ी लिए
छांव ढूंढते हैं!) पंक्तियों से प्रेरित होकर रचना लिखी
रोक दी है जिंदगी
न जाने कौन-सी आरज़ु में,
ग़म के दरिया में अब वो
खुशीयों का बहाव ढूंढते हैं!
निवेदिता जी ने उनके द्वारा रचित कविता 'कही अनकही' एवं 'वुमेंस डे' को पढ़कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
कही अनकही
चमचम जगमगाते झूमर है, खेतों में, खलियानों में,
सुर्ख अमृत सा बह रहा लहू, सरहदों-कारखानों में!
सुखा गया है गर्भ धरा का, जल विकास की भेट चढ़ा,
मुक्त हुआ वो भूमि मोह से, रोजगार कतार खड़ा!
वुमेंस डे
यू फाइट टू प्रोटेक्ट यौर् होम एंड दी अर्थ,
यू फाइट टू लेट गर्ल चाइल्ड टेक बर्थ!
यू फाइट फॉर डिग्निटी, एक्वेलिटी, एंड रेस्पेक्ट फॉर यौर वर्थ,
यू फाइट टू प्रोटेक्ट आउर लैंड, आउर् वलनेरेबल अर्थ!
लिटेररी ग्रुप के सभी सदस्यों द्वारा अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि, सादर नमन, ओम शांति शांति।
सरिता त्रिपाठी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश