ललिता पाण्डेय
मेरी जुबां का पहला स्वर है माँ
मेरी लिखावट का पहला अक्षर है माँ
लड़खड़ाते कदमों की गिरने की आवाज है माँ
विश्वास की अनुभूति है माँ
पहली रसोई में जले पराठे की मुस्कान है माँ
स्वयं को परखने का दर्पण है माँ
हमारी हर समस्या का समाधान है माँ
मंत्रो में ओउम है माँ
हमारी गलतियों का निराकरण करने वाली
गंगा सी पावन है माँ
हर घर की छटपटाती नजरों की
आक्सीजन है माँ।
ललिता पाण्डेय
दिल्ली