स्मिता पांडेय
तपिश बहुत कम हो जाती है,जब पड़ती है फुहार,
आज बहुत है याद वह आता, पहला पहला प्यार |
कितनी नादानी थी मन में,सब कुछ था अनजाना,
पर तेरी ममता कहती थी, बिल्कुल न घबराना ,
आज सभी देते हैं मुझको ,भिन्न भिन्न उपहार,
पर मुझको तो याद है आता,पहला पहला प्यार |
चिर परिचित है पंथ भले ही ,पर मैं हूँ एकाकी,
तेरे जाते खिसक गए सब, याद रह गई बाकी,
कुटिल भावना छिपी है सबमें,मन में है प्रतिकार,
तब मुझको फिर याद है आता,पहला पहला प्यार |
आज धूप में तप कर मिलती, दो जून की रोटी,
पहले पूरी हो जाती थी, ख्वाहिश छोटी छोटी,
हँस कर कैसे कर लेती थीं,हर मुश्किल स्वीकार,
माँ मुझको लौटा दो मेरा ,पहला पहला प्यार |