कर्म और भाग्य
कर्म प्रधान विश्व देखकर, भाग्य बहुत चकराया,
मानव को सम्मोहित करने, उसने जाल बिछाया ।
धर्म अर्थ और काम मोक्ष से, जग सारा है चलता,
मगर भाग्य ने निष्क्रिय रहना ,हम सबको सिखलाया ।
खेत कर्म है भाग्य बीज है, इसको तुम पहचानो,
कृषक बनो तब समझोगे तुम ,इन दोनों की माया ।
भाग्य उन्हीं का अनुगामी है ,जो हैं कर्मठ प्राणी,
कर्म किए बिन भाग्य न बदले ,समझाने यह आया ।
अभी विश्वास बाकी है
किसी का घर हुआ सूना, किसी में आस बाकी है,
लड़ेगा तब तलक मानव, जब तक सांस बाकी है।
आंखों में समंदर था, मगर मैं रो नहीं पाया,
मेरे बच्चों की आंखों में, अभी विश्वास बाकी है।
अभी बादल घनेरे हैं,अभी सुख ने मुंह फेरे हैं,
पर सूरज निकलने का, अभी एहसास बाकी है।
किसी की नाव न डूबे, प्रभु हमसे न तू रूठे,
सभी की सुन रहा अर्जी, मेरी फरियाद बाकी है।
स्मिता पांडेय