दर्पण तू सच बोलता होता,
संसार पूरा शत्रु तेरा होता ।।
घर-घर में तेरे टुकड़े बिखरे होते,
सच्चाई भी तेरी इस दशा में रोया होता।।
तेरे सम्मुख धूर्त का क्या रंग होता,
कटू सच्चाई से स्याह चेहरा होता,
सूर्पनखा क्या इतराती तेरे सम्मुख,
रावण ने भी क्रंदन किया होता।।
दर्पण तेरी वाणी कटु सत्य सी होती,
सुंदरी का यवन लजाया होता।।
गांधी की तरह सत्य से प्रयोग करता कहीं,
कोई गोडसे तुझे भी पत्थर से तोड़ गया होता।।
संजीव ठाकुर अंतरराष्ट्रीय कवि चौबे कॉलोनी रायपुर 9009 415 415