छब्बीस तारीख के जनवरी महिनवा।
साल सन् पच्चास इस्वी मंगल सुदिनवा।।
नया संविधान बनलि सबके सम्मान मिलल-
लागू भइले येही दिन नवका विधनवा।
अंश अनुदान मिलल व्यस्क मतदान मिलल-
भारत गणतंत्र भइले जनतंत्र ससनवा।
गाँधी के नाम लेके देहिया प खादी आइल-
गली गली खूलि गइलें दारू के दुकनवा।
मूल अधिकार मिलल बोले के आजादी बा-
काम रोजगार नाहिं जीये के ठेकनवा।
दानव के साया में जियतारी निर्भया-
सरेआम सड़की प टूटत बा कानूनवा।
लोन आइल इटली जपान पेरिस लंदन से-
नेताजी के बबुआ के लागल करखनवा।
कोटा के रासन अ सिरमिट के परमीट के-
लीडर डीलर दूनो मिली लूटले खजनवा।
शुद्ध पानी हवा नाहिं रोग बाटे दवा नाहिं-
जनता के आफत में परल बा परनवा।
लाचार मजदूर मरे माजा लेबे पूँजीपति-
फँसरी लगा के घरे मरत बा किसनवा।
तितर बितर गनतंत्र भीतर भीतर खड़यंत्र-
गावे *अमरेन्दर* जन गन मन के गनवा।