भूमंडल में गूंज रही है ,
ऋषिवर बापू की गाथा।
था वह मनुज हिमालय सा,
नहीं झुका जिसका माथा।
भय का बिलकुल नाम नहीं था,
सत्याग्रह आंदोलन में ।
सारी जनता मुग्ध हुई थी,
महामंत्र के मोहन में ।
भीषण लू चलती हो चाहे,
बरसे बर्षा का पानी।
निर्भय संत बढ़ा जाता था ,
पैरों में गति तूफानी ।
पाप गुलामी से जब धरती ,
त्राहि-त्राहि थी चीख पड़ी ।
मोहन ने तब गांधी बन कर,
भारत माता मुक्त भारत करी।
सत्य अहिंसा व्रत को ले तब,
चरख चक्र ले हाथ में ।
मिटा दिया दासत्व कलुषतम,
अंकित भारत माथ में ।
सुषमा दीक्षित शुक्ला