नाम नन्हें था बचपन में मगर ये कौन,
जानता था नभ से भी ऊँचा स्वाभिमान था।
सरल स्वभाव के थे भारती के लाल पर,
देश की समूचे वो तो आन बान शान थे।
सोचा न था कभी पाक, पैंसठ में पाया मात,
तोड़ा हर मोर्चे पे उसका अभिमान था।
जय जवान जय किसान नारा बोले शास्त्री,
हर्षित हुआ तब ये पूरा हिन्दुस्तान था।
जोरि-जोरि कर कर रहा, शत-शत उन्हें प्रणाम,
ताशकंद में सो गये, रहस्य अभी गुमनाम।
नीरज कुमार द्विवेदी
बस्ती-उत्तरप्रदेश