*रेगिस्तान में बाढ़ :यात्रा - वृत्तांत*
बात सन् 1997 की है। मैं अपने पति और 5 वर्ष के बड़े बेटे के साथ राजस्थान के सीमा वर्ती जिले जैसलमेर जा रही थी। पटना से दिल्ली, और दिल्ली से जोधपुर तक की रेल यात्रा तो सामान्य रही पर जोधपुर से जैसलमेर जाने के लिए सिंगल लाइन की रेल यात्रा के लिए हम लोग पैसेंजर ट्रेन में बैठे। पर कुछ दूर जाकर ही रेलगाड़ी रुक गई! क्योंकि रेलवे ट्रैक पर बरसाती नदी के साथ प्रभूत मात्रा में आया बालू इकट्ठा हो गया था! सभी पुरुष यात्री रेल के डिब्बों से उतर कर कहीं से फावड़ों का इंतजाम कर ट्रैक पर से बालू हटाए और फिर ट्रेन धीरे-धीरे बैलगाड़ी की तरह चल पड़ी! पर कुछ किलोमीटर जाकर ही रेलगाड़ी पुनः रुक गई थी। डिब्बों से कई यात्री उतरे और पुनः बालू हटाया गया तब जाकर ट्रेन चली। लेकिन कुछ दूर जाकर फिर वही समस्या! आगे दूर तक रेलवे ट्रैक पर बालू ही बालू!! अंततः कोई विकल्प ना देख कर हम ने आगे का सफर बस से तय करने का निर्णय लिया।
लगभग 6 घंटे का सफर अभी बाकी था। बस खचाखच भरी थी। तिल धरने की भी जगह नहीं थी। किसी तरह ड्राइवर के बगल में एक सीट की व्यवस्था हुई और मैं अपने 5 वर्षीय बेटे को लेकर वहां बैठ गई। पतिदेव को कोई सीट नहीं मिल सकी, सो वे खड़े रहे। कहने को तो बस चली, पर उसके रास्ते में भी बालू ने हमारा पीछा ना छोड़ा!!
बस कोई आधा घंटा भर चली होगी कि रुक गई!पता चला सड़क पर बालू ही बालू है!! फिर बस से लोग उतरे': बालू को किसी तरह यात्रियों ने मिलकर हटाया और फिर बस चली पर कुछ दूर चलने के बाद पुनः वही समस्या!... फिर कुछ ही देर में मूसलाधार बारिश होने लगी और जाने कहां से बरसाती नदी उफनती हुई हहाकर चली आई! रेगिस्तान में बाढ़!! इससे पूर्व मैंने बरसाती नदी का मन को दहला देने वाला इतना भयंकर रूप नहीं देखा था!! गोल - गोल वृत्ताकार उर्मियों वाले खदबदाते उफनते पानी के सैलाब के कारण कई जगह से सड़क टूट गई थी। महज दो घंटा भर होते ही सड़क पानी में डूब गई और बस में पानी भर गया। पानी बैठने के सीट तक पहुंच गया था और बस के चलने से हिलता - डोलता पानी का स्तर और हिचकोले खाता हमारा शरीर कमर तक पानी में डूबा हुआ था!!! बड़ी मुश्किल से कंधे पर अपने 5 वर्षीय बेटे को बिठाए उसे बचाई हुई थी मैं!! और वह बिल्कुल डर से सहमा हुआ था... बार-बार कह रहा था: *हमें पटना से नहीं आना चाहिए था, नानी मां के पास ही रहना चाहिए था, हम क्यों जा रहे हैं जैसलमेर मम्मा!*
सभी यात्री भय और दहशत में थे। किसी की बुद्धि काम नहीं कर रही थी। सभी भगवान की गुहार लगा रहे थे और किसी तरह अपने गंतव्य तक पहुंचने की प्रार्थना ईश्वर से कर रहे थे। इसी तरह अनिश्चितता में डूबे... ईश्वर की कृपा पर स्वयं को सौंपे हुए भूखे - प्यासे लगभग 15 घंटे का सफर तय करने के बाद एक जगह ढाबा जैसा कुछ दिखा तो मेरे पति दौड़कर एक बिल्कुल गीली चौकी पर हमें बिठाने ले गए। छाती तक तो हमारा पूरा शरीर और कपड़े बिल्कुल गीले थे जिस से पानी टपक रहा था। उन्होंने कहा कि इसपर थोड़ी देर लेट जाइए। थककर चूर हुए शरीर के कारण हम वहाँ निहाल होकर पड़ गए। जहाँ सामान्य परिस्थिति में उस कीचड़ सनी चौकी से सटना भी हम पसंद नहीं करते!! भूखे - प्यासे और थके शरीर को यहां कुछ ब्रेड चाय वगैरह मिल गई और पुनः हम सभी अपने गंतव्य की ओर अग्रसर हुए। ईश्वर को कोटि कोटि धन्यवाद कि 2 घंटे बाद हम जैसलमेर पहुंच चुके थे। 6 घंटे का सफर इसी तरह हमने 18 घंटे में तय किया!!
रेगिस्तान में भयंकर बाढ़ के बीच फँसी, भूखे प्यासे पानी से तर - बतर वह यात्रा आज भी मेरे मन - प्राण को सिहरा देती है!
डॉ पंकजवासिनी
असिस्टेंट प्रोफेसर
भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय