मुहब्बत का कोई तो पैग़ाम लिख दो।
हमारे लिए आओ ये शाम लिख दो।।
बना दो लकीरें हथेली पे मेरे।
जबीं पे तुम्हारा ही है नाम लिख दो।।
हुआ बेसुवादी ये दौर-ए-मुहब्बत।
नहीं ग़ौर करना! सरेआम लिख दो।।
छुपाओ नहीं कुछ हमारी नज़र से।
नज़र की रवायत के आयाम लिख दो।।
जिसे पी के चैन-ओ-सुकूं मिल सके कुछ।
ख़ुदा मेरी किस्मत में वो जाम लिख दो।।
ज़हर की लहर-सी नसों में उतरती।
वफ़ा की रवानी सुबह-शाम लिख दो।।
सुकूं का हो बिस्तर वफ़ा की हो चादर।
कि अब ज़िन्दगानी में आराम लिख दो।।
मुहब्बत के हाथों मुहब्बत से सज ले।
मुहब्बत की दुल्हन का अंजाम लिख दो।।
बदन, जान के इस मिलन के सफ़र का।
जहाँ है 'सु'मन' अब वो विराम लिख दो।।
**सुमन मिश्रा**