चांद पर भी वह पहुंच गयी ,
बैटी है वो बैटी है ।
जमाने से लड़ी है वो ।
दुनियासे कहाँ डरी है वो ।
यहाँ देखो वहाँ देखो ।
पैरों पे अपने खड़ी है वो ।
जमाने से कहाँ डरी है वो ।
रानी खुब लड़ी मर्दानी थी वो । भरत मां की ही बैटी थी वो ।
दुनिया से कहाँ डरी है वो ।
चांद पर भी वह पहुंच गयी ।
तिरंगा ऊंचाई पर लेकर खडीहैवो ,
हिम्मत पर अपनी अड़ी है वो । पढ़ाई मे भी वह अव्वल रहती है । भाई के साथ भाई बन जाती है । भाई की तरह ही खड़ी है वो ।
जब वक्त आजाए कोई एसा तो । आगे , केवल आगे बढ़ी है वो ।
डॉ . मुश्ताक़ अहमद शाह । सहज़ "