दो अक्टूबर १९०४ को भारत भू के
मुगलसराय में अवतरित हुआ
एक 'गुदड़ी का लाल'
बचपन में नन्हें नाम से प्रचलित
भारत को किया निहाल
नैतिकता, सादगी और देशभक्ति जिसमें
कूट कूट कर समाई
अल्पायु में पिता चल बसे
ननिहाल रहकर की स्कूली पढ़ाई
फिर काशी विद्यापीठ से उसने
शास्त्री की उपाधि पाई
तत्पश्चात् अपने उपनाम से
श्रीवास्तव शब्द हटाई
सादा जीवन,उच्च विचार
उसके रग रग में था बसता
इसलिए कभी नहीं उसने
किया उसूलों से समझौता
बचपन से ही गांधी जी के
विचारों से था बहुत प्रभावित
तभी विद्यार्थी जीवन में ही हुआ
असहयोग आंदोलन में सम्मिलित
दहेज प्रथा का वे करते बहुत विरोध
पत्नी ललिता का मिलता इसमें सहयोग
सन् एकसठ में गृहमंत्री के
पद पर कार्यभार संभाला
फिर सन् चौंसठ में अपनी कुशलता से
प्रधानमंत्री पद भी संभाला
वर्ष चौंसठ पैंसठ में जब राष्ट्र में
खाद्य संकट था गहराया,
तो उन्होंने 'सप्ताह में एक दिन उपवास'
यह नारा भी लगवाया
सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी हेतु
मरणोपरांत 'भारत-रत्न' से हुए सम्मानित
दुग्ध उत्पादन और वितरण हेतु इन्होंने
किया 'श्वेत क्रांति' को बहुत ही प्रचारित
जय जवान जय किसान का दिया इन्होंने नारा
शांतिदूत उपनाम से भी जानता इन्हें जग सारा
११ जनवरी १९६६ का दिन था अति दुखदाई
जब ताशकंद से उनके निधन की खबरें आई विजयघाट पर गुदड़ी के लाल की अंत्येष्टि हुई
और उनकी आत्मा पंचतत्व में विलीन हो गई
स्वरचित मौलिक रचना
राजीव भारती
गौतम बुद्ध नगर नोयडा।