गाँधी जी और खादी

. देश की दो विभूतियों -महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री जी को जन्मदिवस पर शत-शत नमन



       डॉ मधुबाला सिन्हा


                भारत के स्वतंत्रता संग्राम में,,आज़ादी के आंदोलन में,,खादी का बहुत महत्व रहा। 1920 के दशक में महात्मा गाँधी ने देश के लोगों को आत्मनिर्भर बनने के लिए खादी का प्रचार-प्रसार किया था।खादी,जो चरखे की मदद से सूत कात कर,करघा पर वस्त्र बना जाता था ।यह- सूती, रेशमी,ऊनी,, सभी धागों से बुनकर विभिन्न आकर और विविधता में वस्त्रों को तैयार किया जाता है।खादी की खसियत यह भी है कि जाड़े में यह गर्म और गर्मी में ठंढ़ा रहता है।'खादी उधोग' गाँवों की ताकत है और गाँधी जी गाँव को ही पहले मजबूत करना चाहते थे।उनका मानना था कि गाँव की ताकत मजबूत होगी तो समाज और देश मजबूत होगा।


             "लघु उद्दोग भारती" एक ऐसा ही संगठन है जिसकी लगभग 250 शाखाएँ पूरे देश में फैली हुई हैं और लगभग 400 से ज्यादा जिलों में इसका विस्तार,,सदस्यता के साथ हुआ है। इसके माध्यम से कच्ची सामग्री,यानि कच्चे सूत खरीद कर,गुणवत्ता को रख कर,उद्दमी,कार्यकर्तों और ग्राहकों के बीच सामंजस्य स्थापित करके खादी के प्रचार-प्रसार,विक्री और उत्पादन के लिए एक अनुकूल वातावरण बनाता है।घरेलू और ग्रामीण महिलाओं को प्रोत्साहित कर उनके गुणों को विकसित करवाता है,,,साथ ही आत्मनिर्भर भी बनाता है और यही संदेश और प्रयास ,गांधी जी का था।गाँधी जी के विचारधारा को निरन्तरता में बनाए रखने के लिए और खादी के महत्व को परिभाषित करने के लिए अप्रैल 1957 में "अखिल भारतीय खादी एवं ग्रामीण बोर्ड "का निर्माण भी किया गया था,जिसका मूल उधेश्य ही यह था कि ग्रामीण इलाके में खादी और उसके महत्व को विकसित किया जाय।


    महात्मा गाँधी की खादी,भारत के स्वतंत्रता संग्राम की पहचान से लेकर फैशन तक का सफर है।गाँधी जी ने भी कहा था --" खादी केवल वस्त्र नहीं,बल्कि विचार भी है"और यही बात आज हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी भी नारा दे रहे हैं--"राष्ट्र के लिए खादी, फैशन के लिए खादी" और मैं भी यही कहती हूँ कि खादी विचार जे साथ,देश का सम्मान भी है,,।


          हम जैसे ही खादी और चरखे की बात करते हैं,हमारे सामने आधी धोती वाले बापू की चरखा चलाते, तस्वीर आ जाती है और देश के प्रति हमारी भक्ति,जिम्मेदारी और भी सजग हो उठती है।खादी, हमारे देश के स्वतंत्र होने का परिचायक है,देश की विरासत है।खादी ने, आजादी की लड़ाई में पूरे देश को संगठित करने का काम किया है,और सूत्रधार रहे है--महात्मा गाँधी।उनका कहना था कि जबतक हम स्वयं स्वावलंबी नहीं बनते,हम परिवार,समाज और देश को कैसे आत्मनिर्भर बना सकते हैं। इसके लिए गाँधी जी ने खादी को,सुख का परिभाषा ही बना दिया था और 1918 में गरीबी हटाने और देश को स्वावलंबी बनाने के लिए आंदोलन की ही शुरुआत कर दी थी। 'विदेशी हटाओ - स्वदेशी अपनाओ ' का नारा बापू ने इसी आत्मनिर्भरता के लिए दिया था।


          आज खादी ने देश ही नहीं,विदेशों में भी अपनी पहचान बनाई है,परन्तु यह आजादी के आंदोलन में गांधी जी के लिए एक अहिंसात्मक और रचनात्मक हथियार के रूप में प्रयुक्त हुआ था,,क्योंकि यह उसी समय विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार कर ,स्वदेशी यानि खादी को सामने लाता गया था,उसका महत्व बताया गया था। खादी को प्रचलित कर गाँधी जी ने देश को आत्मनिर्भर बनाया और आजादी का परचम लहराया।साथ ही हमें गुलामी की बेड़ियों से आज़ाद कराया।गाँधी जी अहिंसात्मक लड़ाई लड़ते थे।कारण था कि वे समस्या के मूल में जाते थे,जड़ को उखाड़ने का प्रयत्न करते थे।वे जानते थे कि कहाँ प्रहार होगा तो परिणाम क्या होगा और यही कारण था कि उन्होंने खादी के माध्यम से आत्मनिर्भर होना सिखाया और हमे आजाद होने का मंत्र बताया।


                आज पुनःश्च मैं उनके जन्मदिन पर देश को बधाई देती,उन्हें नमन करती हूँ।साथ ही अन्न ,जवान और किसान के महत्व को परिभाषित कर देश की उन्नति में सफल साधक,सादगी की मूर्ति,,लाल बहादुर शास्त्री जी को भी,उनके जन्मदिन पर शत-शत नमन करती हूँ🙏🙏🙏


       धन्यवाद


©डॉ मधुबाला सिन्हा


मोतिहारी,चम्पारण


01 अक्टूबर 20 


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