मचाना होगा अब ऐसा हाहाकार,
दुश्मन लगे चूड़ियों की खनकार।
बहुत सह लिया जुल्म ओ सितम,
करना ही होगा जालिमों पर प्रहार।
कब तक होता रहेगा यूँ खिलवाड़,
करना ही होगा अब हमें पलटवार।
देख लिया लचीलापन कानून का,
अब खुद करना होगा इनका संहार।
उठो! अब बनना होगा रणचण्डी,
नरमुंड पहनने होंगे रौद्र रूप धार।
ललकारो सब दुश्मनों को एक साथ,
छोड़ने नहीं ये जाति धर्म के ठेकेदार।
नेताओं को भी सबक सिखाना होगा,
बताना होगा नारी नहीं है अब लाचार।
अब कर दो सिर इनका धड़ से अलग,
मिलेगी ऐसे सजा कर दो यही प्रचार।
याद दिलानी होगी इनको यही बात,
सुनो! हम ही हैं इस सृष्टि का आधार।
"सुलक्षणा" त्याग दो अब कलम को,
हाथों में उठा लो तुम भी हथियार।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत