यह कैसी स्वतन्त्रता

 



यह कैसी स्वतन्त्रता है ?


हम भूल गए है राह 


केवल गतिहीन दौड़ 


दिशाहीन पथ 


चका चौंध के दीवाने 


मतिभ्रम फैशन ही होड़ 


क्या यही स्वतन्त्रता है..?


भूले है बडो का मान 


करते अपनों का अपमान 


क्या थी भगत सिंह की शान, 


केवल कुछ चंद सिक्कों के हित 


हमने बेची मानवता है!


कहीं कोई न भाईचारा है 


आज के युग मे सस्ता है! मानव 


सबको बस रुपया प्यारा है, 


अरे जातिवाद के लफडे फैलाकर 


वो मुस्लिम है, तुम सिक्ख हो 


क्या भारती के जिगर के...


टुकडो को बांटते हो, 


यह कैसी है आजादी...?


तुम अपनी धरती 


अपने भाइयों मे पाटते हो, 


क्यों भूल गए...?


तुम अपने ही इतिहास हो..


कितने भगत सिंहो ने 


अपने ही खून से सींचीं


ये भारत की फुलवारी 


याद रखो केवल 


जिसने हमको दलाई आजादी 


वो केवल एक लाल रंग था 


उसकी एक ही जाति थी 


वो केवल थे..भारत वासी 


केवल भारती हमारी माता है, 


आजादी के मतवालो ने 


हँसकर खाई थी फांसी 


आज उसी धरती का 


कैसे करते हो बंटवारा ?


कैसे बनेगा "खालसा ", गोरखा?


पंजाब, यदि बांटना ही है 


तो विश्व में प्यार बांटो 


यदि छांटना ही है तो 


अवगुणो को छांटो


यदि हंसो तो अपनी मूर्खता पर 


रोना है तो किसी के दुःख पर 


जिस धरती पर पल कर 


तुम स्वतन्त्रता अपनी 


मनमानी को ही मानते हो 


अरे फिर डंसेगा गुलामी का अजगर 


 *क्या नहीं... अपनी भूल को मानते हो..?* 


 


                      प्रधानाध्यापिका 


                       श्वेता कनौजिया


                      गौतम बुद्ध नगर 


                          (उ.प्र)


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