वो आंखें


उनकी आंखों में देखा तो 


हृदय का अमृतपान हुआ


रहने को तरसे क‌ईं नज़ारे जहां


मेरा वो अपना स्थान हुआ


एसी लगन उन आंखों की कि


चकोर बनकर जैसे चन्द्रमा निहारूं 


प्रकृति भी इतनी निराली


प्रेम जो मेरा इतना दयावान हुआ


अथा-सागर की गहराइयों का 


सहज ही अनुभव कराती


उनके लिए जीना उनमें डूबना


मेरा एक समान हुआ


उनमें रहती रात्रि की ठंडक


और रहता दिन का प्रकाश 


उन आंखों में बस कर मेरा


जीवन बिताना आसान हुआ


 


कवि स्वामी दास'


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