रीमा दिवान चड्डा
आदिवासियों के मसीहा ,जंगल के गांधी स्वर्गीय प्रोफेसर पी .डी.खेरा जी की आज प्रथम पुण्यतिथि है .प्रोफेसर खेरा जो लाहौर में जन्में ,दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे ,वे खेरा सर जो गत तीन दशकों से अचानकमार टाइगर रिजर्व के लमनी गांव में कुटिया बनाकर रह रहे थे .खैरा सर ने बैगा जनजातियों की शिक्षा और उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था. ज़मीन से जुड़े देवपुरुष जिन्होंने अपने जीवन को लोगों के हित में लगाया.
खादी के कुर्ते पाजामे में सादगी और सरलता से जीने वाले एक अति विशिष्ट व्यक्ति जो अति साधारण रूप लिए आदिवासियों के हित के लिए सोचते ही नहीं करते भी थे .दिल्ली से एक बार छात्रों को अध्ययन के लिए बैगा आदिवासियों के बीच लेकर आये और इस कदर प्रभावित हुए कि फिर रिटायरमेंट के बाद आकर यहीं बस गये .
बैगा आदिवासी से अपनत्व का रिश्ता बनाया ,उनके बच्चों को हैण्ड पम्प पर नहलाया, साफ - सफाई का महत्व समझाया,अपने कांधे पर खादी के थैले में रखे चना मुर्रा उन्हें बाँटते ,प्यार लुटाते रहे .
प्रो .खैरा लमनी से रोज़ बस से छपरवा के स्कूल जाते और अलग -अलग कक्षाओं में अंग्रेजी पढ़ाते .पक्के गांधीवादी रहे प्रोफेसर खेरा खादी ही पहनते थे.एक छोटी कुटिया ,कुछ कपड़े और भोजन का सीमित सामान यही उनकी पूंजी थी .अपनी पेंशन इन बच्चों के उत्थान में ही लगा देते थे.एक बार छत्तीसगढ़ सरकार ने उन्हें सम्मान के साथ दो लाख रुपये निधि के तौर पर दिये जो उन्होंने इन बैगा बच्चों के स्कूल को दे दिये.वन जीवन पर फोटोग्राफी और लेखन करने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्राण चड्ढा जी ने उनकी तस्वीरें लीं थी और उन पर फेसबुक पर काफी लिखा है जिससे छत्तीसगढ़ के बाहर भी लोगों को खेरा सर के प्रेरक व्यक्तित्व के बारे में जानकारी मिली है.
आदिवासियों के उत्थान के लिए जीवन के तीन दशक समर्पित करने वाले कृशकाय खैरा सर अपने अंतिम दिनों में बहुत बीमार रहे .बिलासपुर अपोलो में उनका इलाज चला.सुनील जायसवाल जी ने उनकी सेवा की और उनको मुखाग्नि भी दी .उनकी अंतिम यात्रा में बड़ी संख्या में वरिष्ठ अधिकारी ,नेता ,नागरिक और वनवासी उपस्थित थे.
उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर आज उनकी स्मृति में सुनील जायसवाल की तरफ से गांव लमनी में पूजा पाठ और श्रद्धांजलि का एक कार्यक्रम रखा गया है.ऐसे देवपुरुष को हम सबका शत शत नमन .