मंजिल

 



मंज़िल ना सही सफ़र तो मिला है,


ज़िन्दगी जीने का एक बहाना मिला है,


लगा हूँ पूरी करने को ज़िद अपनी,


सपनो के पीछे दौड़ने का सलीका मिला है,


खोया हुआ था मैं ना जाने कहाँ पर,


खुद ही खुद को ढूँढने का रास्ता मिला है,


लड़ते-लड़ते खुद से,


दुनिया से लड़ने का हौंसला मिला है,


मंज़िल ना सही सफर तो मिला है।


 


करता रहा कोशिशें खुद को पाने की ,


कभी ना छोड़ी उम्मीद मंज़िल को पाने की।


हारा था मैं भी खुद से पर,


हौंसला ना टूटने दिया,


हर कोई रूठा मुझसे ,


पर खुद को खुद से ना रूठने दिया।


 


©परीक्षित जायसवाल 


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