तेरा व्यथा कौन समझे,
हे धरती के भगवान।
तुही तो पालनहार है,
नाम है तेरा किसान।।
दिन रात करता महेनत तू,
धरती माँ की रखवार है।
अन्नदाता तुझे सब कहता,
इस दुनिया की तू पतवार है।।
कितनो रहे बरसात धूप,
तन से पसीना गलाता है।
बल तोड़ तू महेनत करते,
फिर भी व्यथा नहीं सुनाता है।।
पशु पंक्षी कीड़े मकोड़े,
सब को खिलाता है भोजन।
चिन्ता रहता है इस दुनिया की,
तू खुद रहता है उपवास भूखन।।
सुख देता है पुरे जगत को,
खुद दुख को सहता है।
अन्नदाता,किसान तुझे,
धरती पुत्र सब कहता है।।
✍रचना कार✍
गोकुल राम साहू "धनिक"
धुरसा-राजिम(घटारानी)
जिला-गरियाबंद(छत्तीसगढ़)
9009047156