इन्सानियत सभी धर्मों मे सर्वोपरि धर्म है!एक दूसरे की जरूरत समझना,मदद करना ,दूसरो की भावनाओं की कदर करना इन्सानियत कहलाता है। परंतु आजकल तो इंसान परोपकार की भावना को त्यागकर केवल अपने लाभ के विषय मे सोचता है।वह किसी की मजबूरी के बारे मे नही सोचता!अगर हम मंदिर मे जल लेकर जाते हैं और वहां कोई प्यासा बीमार व्यक्ति है जिसे जल की अत्यधिक आवश्यकता है तो मानवता के अनुसार वह जल उस को पिला देना चाहिये जिससे कि क्या पता उसके प्राण बच जायें।ईश्वर को कुछ समय बाद भी जल अर्पित कर सकते हैं यही इन्सानियत है,
हाल ही के दिनों मे बहुत सी घटनायें ऐसी होती हैं जिससे पता चलता है कि इन्सानियत तार तार हो रही है जैसे कि सडक पर किसी व्यक्ति के यदि चोट लगती है तो लोग उसकी मदद करने के अलावा उसकी वीडियो बनाकर सोशल साईड पर डालते हैं जबकि उस व्यक्ति को उनकी मदद की आवश्यकता होती है।आज समाज मे एक नारा बडा चलन मे है कि बेटा बेटी एक समान ,,परंतु क्या ये सत्य है?क्योंकि जब एक लडकी राह मे अकेले नही चल सकती ,पता नही कब कौन इंसान जानवर के रूप मे उसके सामने आ जाये ।क्या इंसानों की इन्सानियत एक दम मर चुकी है।।हमे अपने अंदर के घृणा ,क्रोध,अहंकार त्यागकर सबके साथ मिलकर रहना चाहिये।जरूरतमंद की सहायता करनी चाहिये!और जो इंसान होकर भी दरिंदों का रूप धारण कर बहन बेटियों के साथ दरिंदगी करते हैं उन्हे कठोर से कठोर सजा दी जाये !ताकि उन बहन बेटियों के साथ न्याय हो सके।।और आगे कोई भी हैवान ऐसा कर्म ना करे!
एकता शर्मा
रुड़की