अपनी प्यारी भाषा हिंदी।
जन जन की अभिलाषा हिंदी।
और अधिक क्या करूँ प्रशंसा,
जीवन की परिभाषा हिंदी।।1।।
जीवन का हर मर्म बताती।
अर्णव से यह रत्न लुटाती।
संस्कृति से जुड़कर रहने का,
सबको अनुपम मंत्र सिखाती।।2।।
गाँव शहर का मेल कराती।
भेदभाव को दूर भगाती।
सबको लेकर चलती सँग में,
समरसता का भाव जगाती।।3।।
हिंदी है भारत की थाती।
सकल धरा गुण इसके गाती।
हिंदी का प्रयोग करने में,
फिर क्यों हमको लज्जा आती।।4
आओ हम हिंदी अपनाएँ।
राष्ट्र भक्ति का अलख जगाएँ।
स्वर देकर भारत माता को,
जग में नव पहचान बनाएँ।।5।।
डाॅ. बिपिन पाण्डेय