हिन्दी की अस्मिता बचा लो
अंग्रेजी न इसमें पालो ।
हिन्दी को हिन्दी रहने दो ,
हिंग्लिश में इसको न ढालो ।
यह कितनी है प्राचीन भाषा
शब्दों की भंडारी भाषा
हर रिश्ते के अलग शब्द है
आंटी ,ग्रैनी की न मारी भाषा ।
काका ,मौसा ,फूफा ,ताया ,
सबका काम चला दे अंकल ।
हिन्दी में हैं रिश्ते दर्जन भर ,
ताके नहीं वो किसीका मुंह पर।
भाषा अपनी है वैज्ञानिक ,
लिपि भी है सबसे उत्तम ।
जितना लिख लो उतना बोलो ,
साइलेंट फाइलेंट का भेद खोलो ।
बहुत शुद्ध की नहीं जरुरत ,
सरल सहज और सीधा बोलो ।
मन के सारे बंधन खोलो ,
देखो इसमें जहर न घोलो ।
जय हिन्दी जय हिन्दुस्तान
हिन्दी की है अपनी शान ।
-सुधा मिश्रा द्विवेदी ,(स्वरचित )
कोलकाता ,तुरंत सृजित 14.09.2020