"हिंदी है मेरी धड़कन मैं हिंदी जैसी दिखती हूँ।"
हिंदी ही लिखती है मुझको औ मैं हिंदी लिखती हूँ!
हिंदी है मेरी धड़कन मैं हिंदी जैसी दिखती हूँ।।
कलम भी कर रही मेरी इसी की ही इबादत है।
नही महफूज है हिंदी कि देती ये शहादत है।
व्यथा अपनी सुनाती है सलीके से बताती है।
हृदय में पीर उठता है नयन से ये जताती है।।
अंग्रेजी की है कीमत मैं रद्दी जैसे बिकती हूँ।
हिंदी है मेरी धड़कन मैं हिंदी जैसी दिखती हूँ।
असर मेरा कहाँ दिखता जबां पे अपनो के आखिर।
चहेती हूँ कहाँ उनकी बनी हूँ जिनके ही खातिर।।
निगाहें भी झुका लेते अगर हो पास अंग्रेजी।
नही करते तनिक इज्जत करे परिहास अंग्रेजी।।
दफ़्तर में सरकारी मैं फाईलों में ही सड़ती हूँ।
हिंदी है मेरी धड़कन मैं हिंदी जैसी दिखती हूँ।।
वतन पर नाज़ था मुझको चहेती मैं वतन की थी।
गुलामी से मिली राहत कभी सबने जतन की थी।।
नही भाषा मुझे समझें नही इज्जत मिला मुझको।
बड़े ही शर्म से बोलें नज़र को सब झुका मुझको।।
चंदा सी मैं शीतल हूँ सूरज के जैसी जलती हूँ।
हिंदी है मेरी धड़कन मैं हिंदी जैसी दिखती हूँ।।
हिंदी ही लिखती है मुझको औ मैं हिंदी लिखती हूँ।
हिंदी है मेरी धड़कन मैं हिंदी जैसी दिखती हूँ।।
प्रियंका दुबे 'प्रबोधिनी'
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।