ग़ज़ल

         


चाँदनी गुनगुनाती रही रातभर , ग़म वो अपने सुनाती रही रात भर       


आइने में बनाकर कोई अक्स वो। दिल के किस्से सुनाती रही रात भर                            


 


आँख में भरके सपने सलोने कई ज़िंदगी मुस्कुराती रही रातभर।   


 


वक़्त ने जब अँधेरा किया राह में। अपने दिल को जलाती रही रातभर     


                       


ग़म जब आँखों से मेरे बरसने लगे आँसुओं से नहाती रही रातभर।            


     इंदु मिश्रा 'किरण'


    ग़ज़लगो ,शिक्षिका , कवयित्री


       नई दिल्ली -17


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