शाकाहारी खग कभी, कर जाते उपवास।
भादरवा में कब खिले, टेसू चटक पलाश।।-1
गरज बरस कर जा रही, भादों कारी रात।
दुनियाँ ने भी देख ली, बूँदों की औकात।।-2
भादों में गुमराह है, क्या खाँसेगा चीन।
डूबी उसकी गागरी, रहा दीन का दीन।।-3
पंछी में कागा चतुर, पितृपक्ष का देव।
सतयुग से विख्यात है, कलियुग मगन कुटेव।।-4
गुण की पूजा अति भली, खग कागा गुणवान।
काँव काँव मुंडेर पर, सुन चित हो धनवान।।-5
श्राद्ध पक्ष में पितृ सब, आते निज घर गाँव
पिंडा पा आशीष दें, उड़ जाते कर काँव।।-6
जल तर्पण प्रतिदिन करें, सोलह दिन की श्राद्ध
काला तिल ले हाथ में, अर्पण कर दें खाद्य।।-7
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी