दो_कुंडलिया


हिंदी ने हमको दिया, भावों का आकाश |


इसमें रचनाधर्मिता, कब लेती अवकाश |


कब लेती अवकाश, सृजन होता अति पावन |


शब्द-शब्द शृंगार, पाठकों का खिलता मन |


कह विदेह कविराय, भारती माँ की बिंदी |


करते सभी दुलार, सुभाषा है ये हिंदी || ०१


 


हिंदी को अपनाइये, देकर प्रेम अगाध |


पावन इसकी वर्तनी, करिए सृजन अबाध |


करिए सृजन अबाध, निखरती इसमें कविता |


सरस व्याकरण ज्ञान, सरस भावों की सरिता |


कह विदेह कविराय, यही गंगा कालिंदी |


करो सभी अनुराग, सहज भाषा है हिंदी ||०२


 


नवनीत चौधरी विदेह


किच्छा ,ऊधम सिंह नगर


उत्तराखंड


9410477588


Popular posts
अस्त ग्रह बुरा नहीं और वक्री ग्रह उल्टा नहीं : ज्योतिष में वक्री व अस्त ग्रहों के प्रभाव को समझें
Image
गाई के गोवरे महादेव अंगना।लिपाई गजमोती आहो महादेव चौंका पुराई .....
Image
सफेद दूब-
Image
ठाकुर  की रखैल
Image
गीता का ज्ञान
Image