छूकर मेरी ज़ुल्फ़ों को
झोंका हवा का आया
कोई राग ग़ुनगुनाने
मेरे चेहरे पर नूर छाया !
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कुछ पल चुरा के ख़ुशियाँ
दामन में आज भर ली
होकर सवार तरणी
मैं मौजों में आज मिल ली !
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छूकर मेरी ज़ुल्फ़ों को ...
झोंका हवा का आया
कोई राग गुनगुनाने
मेरे चेहरे पर नूर छाया ।
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जल ही जल है समाया
मन उमड़ घुमड कर आया
लहरों की ये रवानी
कहती है एक कहानी ।
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छूकर मेरी ज़ुल्फ़ों को ....
झोंका हवा का आया
कोई राग गुनगुनाने
मेरे चेहरे पर नूर छाया ।
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मैं उड़ चली हूँ नभ में
हमसाया कौन आया
ना बाँधों ,बंधनों में
विराग मुझको भाया !
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छूकर मेरी ज़ुल्फ़ों को ...
झोंका हवा का आया
कोई राग गुनगुनाने
मेरे चेहरे पर नूर छाया !
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ना रूठी मैं किसी से
इल्ज़ाम क्यों लगाया
मन ने मन का साथी
सजदे से उसके पाया ।
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छूकर मेरी ज़ुल्फ़ों को ....
झोंका हवा का आया
कोई राग गुनगुनाने
मेरे चेहरे पर नूर छाया !
✍🏻 संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘