तहसील रिपोर्टर दयाशंकर मौर्य
अयोध्या । रामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के साथ एक ओर नव्य अयोध्या बसाने की तैयारी है, तो दूसरी ओर भरतकुंड को भी उपनगरी के तौर पर विकसित किये जाने की तैयारी है। रामनगरी से 16 किलोमीटर दक्षिण दिशा में स्थित भरतकुंड अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए युगों से प्रवाहमान है।
भगवान राम के वनवास के बाद अनुज भरत ने भरे मन से अयोध्या का राज्य तो स्वीकार किया, कितु स्वयं तपस्वी की तरह राजधानी के वैभव से दूर इसी स्थल पर धूनी रमाकर राज्य संचालित किया। अग्रज राम यदि 14 वर्ष तक वनवास में रहे, तो भरत इतने ही वर्षों तक यहां तपस्यारत रहे और बड़े भाई को अयोध्या का राज्य वापस लौटाने के बाद भरत यहां से वापस अयोध्या लौटे। त्याग-तपस्या और भ्रातृ प्रेम की विरासत यह स्थल आस्था का केंद्र माना जाता है और इसकी साज-संवार के लिए निरंतर प्रयास भी होता रहा है। अब जबकि अयोध्या के साथ उससे लगे तीर्थस्थलों के कायाकल्प की योजना प्रस्तावित हो रही है, तो सबसे पहला नाम भरतकुंड का सामने आ रहा है।
शासन ने भरतकुंड का भव्य-नव्य अयोध्या की उपनगरी के तौर पर विकसित करने की योजना बनायी है। इस क्रम में न केवल भरत की विशाल प्रतिमा स्थापित किये जाने का प्रस्ताव है, बल्कि भरतकुंड को स्वच्छ-शुभ्र बनाये जाने और विश्व स्तरीय सुविधाएं विकसित किये जाने का प्रस्ताव है। समझा जाता है कि राम मंदिर बनने पर प्रतिदिन अयोध्या आने वालों की संख्या लाखों में होगी और इन दर्शनार्थियों के बड़े हिस्से को भरतकुंड से जोड़ कर इस पूरे परिक्षेत्र को पर्यटन हब बनाये जाने की योजना है। इसी योजना के तहत रामनगरी और भरतकुंड के बीच कुछ पूर्व दिशा में सरयू तट पर स्थित भगवान राम के पिता महाराज दशरथ की समाधि को भी विकसित किये जाने का खाका खींचा जा रहा है।